दोस्तों गज़लें आप सुनते ही होंगे लेकिन कुछ गज़लें
दिल को एक दम छू कर के निकल जाती हैं ।

ऐसी ही एक गजल आज आपके सामने पेश कर रहे हैं उम्मीद है आपको पसंद आएगी ।

ये गजल डाक्टर नवाज़ देवबंदी द्वारा लिखी गई है और अनेक मुशायरों में ये गजल वह सुनते रहते हैं ।
हमें तो यह बेहद पसंद है आशा है आपको भी पसंद आएगी ।

शायर भी अब दुखी हो कर थक चुका है और अब उसे मुस्कुराने के अलावा कोई और रास्ता दिखाई नहीं देता और शायर को मुस्कुराता देख उसे रुलाने वाले की खुशी भी ज्यादा देर नहीं रहती ।



ग़ज़ल मुलाईजा फरमाएं...

वो रुला कर हंस ना पाया देर तक
जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक।।

भूलना चाहा कभी उसको अगर
और भी वो याद आया देर तक।।

खुद बा खुद बेसाख्ता मैं हंस पड़ा
उस ने इस दर्जा रूलाया देर तक।।

भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
मां ने फिर पानी पकाया देर तक।।

गुनगुनाता जा रहा था एक फ़कीर
धूप रहती है ना ही साया देर तक।।

कल अंधेरी रात में मेरी तरह
एक जुगनू जगमगाया देर तक ।।

- डा. नवाज़ देवबन्दी



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